फसलों और बीजों की कीमत गांव में रहकर खेती करने वाले किसान को ही पता होती है। शहरों में रहकर सिर्फ खेती और किसान की बातें करने वाले बीजों और किसान को पूरी तरह नहीं समझ सकते। किसान के लिए खेती उसका संसार होता है। उसकी सुबह और रात वहीं होती है । किसान मन लगाकर कड़ी मेहनत करता है और बंजर भूमि में भी फसल पैदा कर देते हैं । बीजों की असली कीमत एक किसान से ज्यादा और कोई नहीं बता सकता क्योंकि किसान के लिए फसल ही उसका सब कुछ होता है ।
बीज बचाओ आंदोलन से की शुरुआत
उत्तराखंड के रहने वाले विजय जडधारी वैसे तो एक आम किसान ही है लेकिन उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से कुछ हटकर प्रयोग किया और कुछ ऐसा कारनामा किया की देश के साथ विदेश तक उनके कार्य की प्रशंसा हो रही है । 1986 से लेकर आज तक उन्होंने एक विशेष प्रकार का ‘बीज बचाओ आंदोलन’ छेड़ रखा है । जो अपने आप में एक अनूठा आंदोलन है इसका उद्देश्य किसान के लिए बेशकीमती बीजों के संरक्षण से संबंधित है । क्योंकि बीजों से ही किसान की फसलों की शुरुआत होती है । खेती के लिए प्रमुख चरण बीजों का सहेजना ही है ।
परंपरागत तकनीक को बचाए रखना था उद्देश्य
टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड के रहने वाले किसान विजय जडधारी ने महसूस किया कि उत्तराखंड के अधिकतर किसान उनके परंपरागत खेती प्रक्रिया को छोड़कर आधुनिक तरीके से खेती कर रहे हैं । जिस में भी वे यूरिया से फसल उगा रहे हैं । आधुनिक तकनीकी पुरानी पद्धति से तेज है लेकिन इसमें जल्दी से फसलों को उगाने के लिए यूरिया व कीटनाशक का उपयोग किया जाता है । यूरिया और कीटनाशक के उपयोग से पुरानी पद्धति को किसान भूलते जा रहे हैं । और ऐसा ही चलता रहा तो पुरानी तकनीक हमेशा के लिए लुप्त हो जाएगी ।
1 वर्ष में उगाते हैं 12 फसलें
विजय जडधारी ने 1970 में अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर बीज बचाओ अभियान शुरू किया । इसका मुख्य उद्देश्य परंपरागत कृषि तकनीक को बचाए रखना था । शुरुआत में तो सब उनकी बातों का मजाक उड़ाया करते थे क्योंकि उनकी तकनीक धीमी थी और आजकल की तकनीक यूरिया के उपयोग से बहुत तेज थी । उन्होंने किसानों को लुप्त हो रही 12 अनाज तकनीक फिर से सिखाई । जिससे किसान 1 वर्ष में ही 12 तरह की फसलें उगा सकते थे । उनकी तकनीक से उत्तराखंड के किसानों के साथ-साथ देश भर की किसानों को फायदा हो रहा है तथा उनकी यह तकनीक विदेशों में भी काफी पसंद की जा रही है ।