औषधि में इस्तेमाल होने वाला कैमोमाइल का पौधा पूरी दुनिया में उगाया जाता है। विशेषकर यह पौधा उत्तराखंड उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों के किसान उगाते हैं। इस पौधे की खुशबू बेहद लाजवाब होती है जो दिमाग को आराम देने में महत्वपूर्ण है। इस पौधे का जिक्र दुनिया के बहुत से पौराणिक ग्रंथों में किया गया है। प्राचीन मिस्र यूनान यूरोपीय देशों से लेकर हर संस्कृति में इस पौधे का जिक्र है। भारत देश में बौद्ध धर्म को मान्यता देने वाले लोग इस पौधे को बहुत अधिक मानते हैं। वह इस पौधे को ईश्वर का वरदान मानते हैं। अगर आप भी पौधे की खेती करना चाहते हैं तो आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपको इस पौधे की खेती करने के बारे में बताएंगे। अगर आपके पास ऐसी जमीन है जिस पर पानी नहीं ठहरता है और आप इसी और फसल की खेती उस पर नहीं कर सकते तो आप इस पौधे की खेती कर सकते हैं।
ध्यान रखें इन बातों का
अगर आप इस पौधे की खेती करना चाहते हैं और आपके पास उपजाऊ जमीन है तो आपको इस पौधे को उगाने के लिए गोबर की खाद या फिर जैविक खाद का उपयोग करना चाहिए। इस पौधे की खेती सूखी जमीन पर ही की जाती हैं। बुवाई के साथ साथ ही इस पौधे में पानी डाला जाता है।
नमी को ध्यान में रखकर करे सिंचाई
अगर आप इस पौधे की अच्छी फसल बनाना चाहते हैं तो आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि इस पौधे को उगाने के बाद जमीन की नमी बरकरार रहे। इसके साथ ही आपको अपने खेत में क्यारी बनाना भी चाहिए। इस पौधे की खेती करने के बाद खेत में किसी भी प्रकार की खरपतवार नहीं डाली जाती है। आपको पहले नर्सरी में इस पौधे के बीज उगा कर फिर उसको खेत में रोपण करना होता है।
25 दिन बाद हो जाती है फसल तैयार
इस फसल को गाने के लिए आपको 750 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। आपको बताना चाहिए कि आप इसकी खेती सीधा खेत में वाटर भी कर सकते हैं लेकिन इस प्रक्रिया में अधिक बीजों की आवश्यकता होती है। इस पौधे की खेती करने के लिए नर्स ने बनाकर इसकी बुवाई करने की सलाह दी जाती है जिससे आप की फसल अच्छी होती है। इस पौधे की खेती करने के बाद खेत में किसी भी तरह की खाद या खरपतवार की जरूरत नहीं पड़ती है। भारत में इस पौधे की खेती का क्रेज दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है और किसान भाई इसे उगाकर अच्छी खासी इनकम भी कमा रहे हैं।