महाकाल या नहीं भगवान शिव की पूजा करना बहुत ही धार्मिक और पवित्र माना जाता है। भारत देश में विभिन्न जगहों पर भिन्न-भिन्न देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। लेकिन सनातन धर्म के अनुसार सभी देवताओं में भगवान शिव की पूजा करना सबसे सरल माना गया है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सभी भगवानों में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवान शिव ही हैं इसी कारण भगवान शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है। भगवान शिव मात्र दूध या गंगाजल के चढ़ावे से ही प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं।
संपूर्ण भारत वर्ष में भगवान शिव की पूजा खासतौर पर श्रावण मास में की जाती है जिसमें भगवान शिव के श्रद्धालु शिवालय में जाकर भगवान शिव के लिंग रूपी अथवा शिवलिंग पर दूध दही गंगाजल आदि अर्पित करते हैं।
भगवान शिव के शिवलिंग पर चढ़ाई जाने वाली सभी चीजें आखिर क्यों चढ़ाई जाती हैं क्या है इसके पीछे वजह? आज हम आपको बताते हैं कि इस चढ़ावे के क्या धार्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं।
शीवलिंग पर चढ़ावा के धार्मि-क कारण
शास्त्रों के अनुसार जब देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे तब समुद्र से सबसे पहले विष निकला जो बहुत अधिक विषैला था जिससे संपूर्ण संसार का नाश हो सकता था। ऐसी परिस्थितियों में संपूर्ण जगत को बचाने के लिए भगवान शिव ने इस विष को पी लिया । समुद्र मंथन से निकला यह विष बहुत अधिक जहरीला था जिसके कारण भगवान शिव का कंठ और शरीर नीला पड़ गया ।
धार्मि-क मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव का जहर पीने के कारण शरीर नीला पड़ा तथा इसका असर भगवान शिव की जटाओं में से निकलने वाली गंगा मां पर भी पड़ा। ऐसी कठिन परिस्थितियों में सभी देवताओं ने भगवान शिव से आग्रह किया कि वह दूध का सेवन करें जिससे जहर का प्रभाव कम हो सके सभी देवताओं के द्वारा विनती किए जाने के बाद भगवान शिव ने दूध ग्रहण किया और देवताओं ने मिलकर दूध से और जल से उनका अभिषेक किया । इस घटना के बाद से शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
भगवान शिव पर चढ़ावे का वैज्ञानिक कारण
भगवान शिव पर चढ़ावे को लेकर जो वैज्ञानिक कारण सामने आता है वह यह माना जाता है कि शिवलिंग एक विशेष पत्थर होता है जिसे नष्ट होने से अथवा क्षरण से बचाने के लिए इस पर दूध दही का अथवा सीखनी और ठंडी वस्तुओं का चढ़ावा किया जाता है ।