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जानियें कैसे एक संगीतकार डीप्रेशन से उभरकर बना करोडो का मालिक

‘तेरी दीवानी’ और ‘सइयां’ जैसे भावपूर्ण गीत गाकर युवाओं के दिलों पर राज करने वाले कैलाश खेर 7 जुलाई को अपना जन्मदिन मनाते हैं. कैलाश खेर आज जिस मुकाम पर हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने काफी मेहनत की है। कैलाश खेर ने कम उम्र में ही घर छोड़ दिया था। उस समय उनकी उम्र 13 साल थी। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के रहने वाले कैलाश बचपन से ही संगीत में मग्न थे। उन्होंने कम उम्र में ही संगीत में महारत हासिल कर ली थी। इसके बाद उन्होंने बहुत संघर्ष किया, उन्होंने बच्चों को न केवल संगीत सिखाया, बल्कि संगीत की ट्यूशन भी देना शुरू किया। उनके पिता एक कश्मीरी पंडित थे और लोकगीतों में भी उनकी रुचि थी। कैलाश को भी बचपन से ही संगीत का शौक था।

कैलाश ने 4 साल की उम्र में गाना शुरू कर दिया था। न केवल उनके परिवार के सदस्य बल्कि दोस्त और रिश्तेदार सभी उनकी प्रतिभा से मंत्रमुग्ध थे। बचपन में अपनी आवाज से सबको मंत्रमुग्ध करने वाले कैलाश के लिए आगे की राह आसान नहीं थी।

बनाया  गायन को अपना जीवन

जब उन्होंने गायन को अपना जीवन बनाने का फैसला किया, तो उनके परिवार ने इसका विरोध किया, लेकिन कैलाश भी हार मानने वाले थे। उन्होंने 14 साल की छोटी उम्र में ही संगीत के लिए अपना घर छोड़ दिया था। इस दौरान कैलाश खूब घूमते रहे। वे जगह-जगह गए और लोक संगीत पढ़ना और सीखना शुरू किया। इतनी कम उम्र में कैलाश के लिए इस रास्ते पर जाना आसान नहीं था। आजीविका के लिए कैलाश ने बच्चों को संगीत की शिक्षा देना शुरू किया।

कैलाश खेर का गीतकार बनने तक का सफर

वह प्रत्येक बच्चे से 150 रुपये लेता था और इस पैसे का इस्तेमाल उनके भोजन, शिक्षा और संगीत के लिए किया जाता था। वर्ष 1999 कैलाश के लिए सबसे कठिन वर्षों में से एक था। यह वह दौर था जब कैलाश का जीवन अंधकार में डूबा हुआ था और आशा की कोई किरण नहीं थी। कैलाश ने इसी साल अपने दोस्त के साथ हस्तशिल्प निर्यात कारोबार की शुरुआत की थी। इसमें कैलाश और उसके दोस्त को भारी नुकसान हुआ। इसी दु:ख में कैलाश ने आत्महत्या करने की भी कोशिश की थी। वह डिप्रेशन में आकर ऋषिकेश गए थे।

दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद, कैलाश वर्ष 2001 में मुंबई चले गए। वहीं रहने के लिए, कैलाश ने तुरंत गाने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। उसके पास स्टूडियो जाने के पैसे नहीं थे। कैलाश मुंबई की सड़कों पर फटी-फटी चप्पल पहनकर घूमते थे। कैलाश के लिए यह शहर जरूर नया था, लेकिन संगीत के प्रति उनके जुनून ने उन्हें इस कठिन समय में हिम्मत दी। कैलाश के जीवन में आशा की एक किरण थी जब वह संगीत निर्देशक राम संपत से मिले और उन्होंने कैलाश को विज्ञापन में जिंगल्स गाने का मौका दिया।

कैलाश ने हिंदी में 500 से अधिक गाने

इस मेहनत का फल उन्हें फिल्मी अंदाज में मिला। इस फिल्म में कैलाश ने ‘रब्बा इश्क ना होवे’ गाना गाया था। ये गाना आते ही लोगों की जुबान पर चढ़ गया. इसके बाद कैलाश ने ‘वैसा भी होता है’ पार्ट 2 में ‘अल्लाह के बंदे’ गाना गाया । इसके बाद कैलाश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बॉलीवुड में उन्होंने ‘रब्बा’, ‘ओ सिकंदर’ और ‘चांद सिफारिश’ जैसे गाने गाए हैं। इनमें से दो गानों के लिए कैलाश को फिल्मफेयर बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर अवॉर्ड भी मिल चुका है।

कैलाश ने हिंदी में 500 से अधिक गाने गाए हैं। इसके अलावा उन्होंने नेपाली, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, उड़िया और उर्दू भाषाओं में भी गाने गाए हैं। कैलाश का ‘कैलाशा’ नाम का अपना बैंड भी है जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शो करता है। कैलाश ने कई सामाजिक कार्यों के लिए अपनी आवाज भी दी है। उन्होंने प्रधानमंत्री के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के लिए ‘स्वच्छ भारत के इनरे कर लिए हैं’ गाना गाया है. इसके अलावा अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के लिए ‘अंबर तक यही नाम गुंजेगा’ गाना भी तैयार किया गया था।

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