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एक चपरासी कैसे बना 1000 करोड़ की FEVICOL कंपनी का मालिक, जाने FEVICOL MAN की कहानी।

परिस्थितियों से हार कर संघर्षो से मुँह मोड़ लेने वाले इंसान जिंदगी में कभी सफल नहीं हो पाते है, अगर आप भी चाहते है जिंदगी में सफल होना तो आपको यह जानना चाहिए की एक गरीब इंसान अपनी मेहनत से कैसे बना अरबो का मालीक, शायद बलवंत पारेख आपके लिए एक नया नाम है। अपने ये नाम शायद पहले कभी नहीं सुना होगा लेकिन फेविकोल का नाम तो सबने सुना है और सब इस कंपनी को जानते भी है। बलवंत पारेख इसी कंपनी के मालिक है। बलवंत उन कुछ उधोगपतियों में शामिल है जिन्होंने आजाद हिंदुस्तान की आर्थिक स्थति को मजबूत बनाने में अपना बहुमूलय योगदान दिया है। आज वो अरबो रूपए के मालिक है लेकिन उनका यहाँ तक पहुंचना इतना आसान नहीं था।

चपरासी से फेविकोल मैन बनने तक का सफर।

लगभग सभी लोगो ने टीवी पर साइमन का सोफे वाले ऐड तो देखा ही होगा, यह ऐड काफी लोकपिर्य हुआ था। साइमन का सोफा मिश्राइन का हुआ फिर कलक्ट्राइन का हुआ उसके बाद बंगालन का हुआ , मत्तलब सोफा पीढ़ीयो तक चलता है जिसके पीछे फेविकोल का जोड़ काम आता है। फेविकोल के बारे में सब लोग अच्छी तरह से जानते है और फेविकोल की टैग लाइन “ये फेविकोल का जोड़ टूटेगा नहीं” सबने सुनी है। सही मायने में देखे तो फेविकोल का जोड़ काफी मजबूत आता है तब ही फेविकोल के ग्राहक दसको तक इसके ऊपर अपना विश्वास बनाए हुए है। फेविकोल की कंपनी को स्थापित करने वाला कोई और साक्ष नहीं बल्कि बलवंत पारेख ही है इसी कारण से उन्हें फेविकोल मैंन के नाम से भी जाना जाता है। फेविकोल बलवंत पारेख द्वारा स्थापित पीडिलाइट कंपनी का एक ब्रांड है , पीडिलाइट फेविकोल के साथ साथ फेवीक्विक डॉक्टर फिक्सइट जैसे पप्रोडक्ट बनती है।

रह चुके है भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा

बलवंत भावनगर के एक छोटे से महुवा नमक कसबे में रहते थे उनका परिवार काफी सामने और मिडिल क्लास था , उनकी भी प्राथमिक शिक्षा कसबे में ही पूरी हुई। जैसे की गुजरात का चलन है की सब अच्छे बिजनेस बनना चाहते है वैसे ही बलवंत ने भी एक अच्छा बिजनेस मैन बनने की सोची थी लेकिन उनके घर वालो को कुछ और ही मंजूर था वे चाहते थे की बलवंत वकील बने और वकालत करे , घर वालो को बात मानकर बलवंत वकालत की पढाई करने के लिए मुंबई चले गए और अपनी पढाई शुरू कर दी , उस समय देश में आजादी का बिगुल बज रहा था और गाँधी जी के विचारो से देश के युवा काफी प्रभावित हो रहे थे। बलवंत भी गाँधी जी के विचारो से काफी प्रभावित हुए और अपनी पढाई बिच में छोड़ के गाँधी जी के साथ आंदोलन में शामिल हो गए अपने ही कसबे से उन्होंने बहुत से आंदोलनों में हिस्सा लिया। एक साल बीत जाने के बाद उन्होंने अपनी वकालत की पढाई फिर से शुरू की और पूरी की।

वकालत की पढाई करने के बावजूद कभी वकालत नहीं की।

वकालत की पढाई करने के बाद प्रेक्टिस करनी होती है लेकिन बलवंत ने प्रेक्टिस करने से मन कर दिया दरअसल वो गाँधी जी के विचारो से काफी प्रभावित थे और अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलना चाहते थे उनका मानना था की वकालत एक ऐसा पैसा है जिसमे हर जगह जूठ बोलना पड़ता है और उनको यह कतई मंजूर नहीं था। वकालत करने बाद उन्होंने वकील बनने से इंकार कर दिया। लेकिन घर परिवार चलने के लिए कुछ तो काम करना था और मुंबई जैसे शहर में बिना काम के जीवन यापन करना बड़ा मुश्किल था तो उन्होंने प्रिंटिंग कंपनी में काम करना शुरु कर दिया लेकिन उनका वहां भी मन नहीं लगता था क्यों की वो अपना खुद का कोई बिज़नेस करना चाहते थे लेकिन उनकी स्थति ऐसी नहीं थी की वो कोई व्यापार शुरू कर सके।

मजबूरी में करनी पड़ी चपरासी की नौकरी

प्रिंटिंग प्रेस में काम करने के कुछ समय बाद उन्हें एक लकड़ी के कारखाने में चपरासी की नौकरी भी करनी पड़ी थी , किसने सोचा था की चपरासी की नौकरी करने वाला आगे चल कर करोड़ो की कंपनी खड़ा कर देगा , चपरासी की नौकरी करने के दौरान वे अपनी पत्नी के साथ गोदाम में रहा करते थे , चपरासी की नौकरी छोड़ने के बाद भी उन्होंने काफी नौकरियां बदली और अपनी जानकारी बढ़ातेगए और नए नए कामो से सीखते रहे , इसी जानकारी के चलते हुए उन्हें आगे चलकर जर्मनी जाने का मौका भी मिला , जर्मनी जाने के बाद उन्होंने व्यापार करने के तरीके को सीखा और आगे चलकर कंपनी को खड़ा किया।

देश आजाद होने बाद मिला बलवंत को सम्मान

बलवंत का समय अब बदल चूका था उनका बिजनेस करने का सपना आप पूरा होने वाला था उनके बिजनेस के आईडिया को इन्वेस्टर्स भी मिल गए थे उन्होंने शुरू में पश्चिमी देशो से साईकिल , एक्स्ट्रा नट्स और पेपर इम्पोर्ट करने के बिजनेस शुरु किया लेकिन उनको काफी ऊपर जाना था , वे अपने किराय के घर से निकल कर अपने खुद के फ्लैट में शिफ्ट हो गए थे। बलवंत की सफलता की सीढ़ी तब मिली जब देश आज़ाद हुआ और आर्थिक तंगी से झूझ रहा था उस समय जयदातर सामान विदेशो से आयत किया जाता था। बलवंत ने भी बाकी व्यापारियों की तरह बहार से आने वाले सामान को देश में ही बनाना शुरू किया।

कैसे बने फेविकोल मेन

बलवंत जब लकड़ी के कारखाने में चपरासी का काम किया करते थे तब उन्होंने देखा की दो लकडिओं को आपस में जोड़ने के लिए बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता था उस समय दो लकड़ियों को जोड़ने के लिए जानवर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता था , जानवर की चर्बी को गोंद बनाने के लिए चर्बी को काफी देर तक गरम करना पड़ता था जिसमे काफी बदबू आती थी और कारीगरों का सांस लेना भी कठिन हो जाता था। इसी के चलते उनके दिमाग में आईडिया आया की क्यों न ऐसा गोंद बनाया जाये जिसमे बदबू भी ना आये और लकड़ी भी आसानी से चिपक जाये तब से उन्होंने इस पर रिसर्च करना शुरू किया और सन 1959 अपने भाई के साथ मिलकर पीडिलाइट नमक कंपनी की स्थापना की।

200 से जयदा प्रोडक्ट बनती है बलवंत की कंपनी

पीडिलाइट कंपनी दो सो से जयदा प्रोडक्ट बनती है लेकिन सब से जयदा फायदा कंपनी को फेविकोल ने ही दिया है। फेविकोल एक अच्छा प्रोडक्ट है जब से भारत में टीवी जगत की शुरुवात हुई तब से ही इसके विज्ञापन पुरे देश में काफी चर्चित है , इसी के चलते फेविकोल को ये ख्याति मिल पाई है। सन्न 1997 में फेविकोल को टॉप 15 ब्रांड्स में भी शामिल किया जा चूका है आज के समय में फेविकोल के विदेशो में भी कारखाने और रिसर्च सेंटर्स है।

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