कहा जाता है कि मनुष्य अपनी प्रतिभा और मेहनत के दम पर पत्थरों में भी लकीर खींच लेता है और कुछ ऐसी ही कहानी है सूरत के एक नामी व्यवसाई की जिन्होंने सूरत में जब कदम रखा था तब उनकी उम्र सिर्फ 13 साल थी और उस दौरान बाद 14 घंटे की नौकरी किया करते थे जिसमें वह मुश्किल से उन्हें इतनी आमदनी हो पाती थी जिससे वह अपना पेट पाल सके लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी थी और धीरे-धीरे मेहनत के मुकाम पर आज इस व्यवसाय की कुल औसत कमाई तकरीबन ₹70 करोड़ सालाना है। व्यवसाय की दुनिया में लोग इस शख्स को जी एल डी नाम के से पहचानते हैं लेकिन उनका पूरा नाम है गोविंद लाल जी भाई ढोलकिया। आइए आपको बताते हैं सिर्फ 13 साल की उम्र में सूरत में आकर 14 घंटे नौकरी करने वाले इस शख्स की जिंदगी अचानक से कैसे बदल गई जिसकी बदौलत आज इनके पास खुद का करोड़ों का कारोबार खड़ा हो गया है और उसमें तकरीबन 10000 लोग मजदूरी करते हैं.
गोविंद लाल जी ढोलकिया ने ऐसे बदली थी अपनी जिंदगी, 14 घंटे करते थे कारखाने में काम
श्री रामकृष्ण एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक गोविंद लाल जी ढोलकिया एक समय में सूरत के कारखानों में 14 घंटे की मजदूरी किया करते थे और मजदूरी में वह हीरो को तराशने का काम किया करते थे। खुद उन्होंने बताया है कि यह काम इतना बारीक होता था कि काफी सारे कन बर्बाद हो जाते थे और उनमें से सिर्फ 28% ही हीरा निकल पाता था लेकिन गोविंद लाल जी के अंदर इतनी प्रतिभा थी कि धीरे-धीरे उन्होंने निकाले गए पत्थरों में सभी हीरे को तराशना शुरू कर दिया हालांकि गोविंद लाल जी के कारखाने के मालिक उन्हें इस काबिल नहीं समझते थे कि उन्हें तारीफ दे सके और इसी वजह से उन्हें उल्टी डांट पड़ जाती थी जिसके बाद आइए बताते हैं गोविंद लाल जी ने कैसे यह ठान लिया कि वह खुद की एक नई कंपनी खोलेंगे.
गोविंद लाल जी को मिला अपने दोस्त का सहारा, इस तरह साझेदारी के साथ शुरू हुई कंपनी
श्री राम कृष्ण एक्सपोर्ट्स के मालिक गोविंद लाल ढोलकिया ने बताया कि जब हीरो को तराशने का काम उन्होंने पूरी तरह से सीख लिया और उन्हें मेहनताना अपने मेहनत के मुताबिक नहीं मिलने लगा तब उन्होंने अपने दोस्त के साथ मिलकर एक नई कंपनी खोलने की सोची और देखते ही देखते उन्हें इस कंपनी में इतना मुनाफा हुआ कि आज उसी कंपनी में तकरीबन 6000 लोग मजदूरी करते नजर आते हैं और इसमें भी हर दिन संख्या बढ़ती जा रही है। उन्होंने बताया था कि जब मैं 1964 में सूरत आया था तब मैंने यह ठान लिया था कि यहां से कुछ बड़ा करके ही जाऊंगा और आज वह उस मुकाम पर है कि प्रतिदिन वह हजारों लोगों को अपनी कंपनी में नौकरी मुहैया करवाते हैं और साथ में उन्होंने उन लोगों का शुक्रिया व्यक्त भी किया है जिन्होंने उनके खराब समय में उनके ऊपर भरोसा जताया रखा था।गोविंद भाई जी को लोग गोविंद काका के नाम से भी पुकारते हैं और उनका मानना है कि ऐसा सुनने में उन्हें बहुत बढ़िया लगता है