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भगवान शिव के गले में आखिर क्यों रहता है नाग, पढ़े पौराणिक कथा

भारत में भगवान शिव को बहुत अधिक पूजा जाता है और ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता हैं और उनकी पूजा करने वाले को मनवांछित फल मिल जाता है आपने देखा होगा कि भगवान शिव की हर फोटो में उनके गले में नाग देवता निवास करते हैं। भगवान शिव को महाकाल और भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के गले में निवास करने वाले नाग देवता के लिए नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। आज आपको बताते हैं कि आखिर भगवान शिव अपने गले में नाग देवता को क्यों स्थान देते हैं

भगवान शिव और नाग देवता से जुड़ी पौराणिक कथा

भगवान शिव और नाग देवता को एक दूसरे से संबंधित माना जाता है इस कथा के अनुसार है नागों के राजा वासुकी अपने परिवार के साथ हैं पता लोग में रहते थे। वासुकी भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे और ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग की पूजा का प्रचलन भी नाग देवता वासुकी नहीं शुरू किया था। देवताओं और असुरों के बीच से जब समुद्र का मंथन किया जा रहा था तो उस समय नागराज वासुकी ने मेरु पर्वत से लिपटकर है रस्सी का कार्य किया था जहां एक तरफ देवता और दूसरी तरफ दानव रस्सी को खींच रहे थे। इस समुद्र मंथन में नागराज वासुकी पूरी तरह घायल हो गए थे। समुंद्र मंथन के इस कार्य में नागराज वासुकी की बहुत बड़ी भूमिका रही और इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने गले में स्थान दिया। आपको बता दें कि नागराज वासुकी के भाई शेषनाग भगवान शिव के साथ विद्यमान रहते हैं और उनके लिए शैय्या रूपी कार्य करते हैं।

नाग पंचमी का त्यौहार मानने की क्या है वजह

हिंदू पंचांग में सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित माना जाता है और इसी महीने में सबसे ज्यादा मनाया जाने वाला त्यौहार नाग पंचमी है। नाग पंचमी त्योहार भगवान शिव और नाग देवता को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार नाग पंचमी सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस माह में हिंदू महिलाएं अपने हाथों में हरे रंग की चूड़ियां पहनती हैं। हिंदू धर्म में भगवान शिव को सृष्टि का रचयिता भी माना जाता है। भगवान शिव ने जब समुद्र का मंथन हुआ तो उससे निकलने वाले विश्व को पी लिया था जिसके कारण इनका शरीर का रंग नीला पड़ गया था। ऐसा माना जाता है कि इस जहर का असर इतना अधिक था कि अगर भगवान शिव से नहीं पीते तो यह पूरे संसार को नष्ट कर देता।

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