इस साल सावन का महीना 25 जुलाई से शुरू हो रहा है वहीं 26 जुलाई को सोमवार है। भारत देश में सावन के महीने में हर सोमवार को भगवान शिव की पूजा की जाती है। हिंदू शास्त्रों में लिखा है कि सावन का महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय है । यही कारण है कि इस महीने भगवान शिव की पूजा की जाती है। बताना चाहेंगे की कावड़ यात्रा की परंपरा भी इसी महीने निभाई जाती है।
कोरोना के चलते शायद शिव भक्तों का जमावड़ा जब नजर आए। मंदिरों में भीड़ कम ही सही लेकिन घरों में भगवान शिव की पूजा जोरों शोरों से की जाएगी। इस महीने भगवान शिव को जल चढ़ाने की विशेष परंपरा है। जल के अलावा भी अन्य कुछ सामग्रियां भगवान शिव को चढ़ाने की परंपरा है आज हम आपको उन्हीं सामग्रियों के बारे में बताने जा रहे है कि कौन सी सामग्री भगवान शिव को चढ़ानी चाहिए और कौन सी नहीं।
तुलसी
बताना चाहेंगे कि हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे की बहुत मान्यता है। कई शुभ मौकों पर तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल होता है। भगवान शिव की पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
नारियल
भगवान शिव की पूजा में नारियल का इस्तेमाल नहीं होता है। बता दे कि नारियल का संबंध माता लक्ष्मी से है इसलिए नारियल का पानी शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए। नारियल का इस्तेमाल भगवान विष्णु की पूजा में किया जाता है।
केवड़े का फूल
भगवान शिव को कभी भी केतकी के फूल कभी भी अर्पित नहीं करनी चाहिए। इसके पीछे भी एक बहुत ही रोचक पुरानी करना है। एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच में सर्वश्रेष्ठ कौन है इस बात की बहस चली गई थी जिसके बाद खुद को श्रेष्ठ बताने के लिए शिवलिंग के एक्सपोर्ट तक जाना था। लेकिन जब ब्रह्मा जी ने भगवान शिव के शिवलिंग के छोर तक जाने का दावा किया तो उस समय केतकी के फूल को साक्षी बताया गया था। और केतकी के फूल का झूठा साक्ष्य देना भगवान शिव को नाराज कर दिया और उन्होंने उसे कभी भी अपनी पूजा में इस्तेमाल ना होने का श्राप दिया।
शंख
भगवान शंकर की पूजा में कभी भी संघ का इस्तेमाल नहीं किया जाता है । परंपराओं के अनुसार भगवान शिव ने शंखचूड़ नामक असुर का वध किया था। शंख को शंखचूड़ का प्रतीक माना जाता है। आपको बता दे कि शंखचूड़ भगवान विष्णु का भक्त था ।
तिल
दिल को भी भगवान शिव की पूजा में उपयोग नहीं करना चाहिए माना जाता है कि दिल भगवान विष्णु के मेल से पैदा हुआ था इसलिए तिल का इस्तेमाल पूजा में नहीं किया जाता।