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पति के जाने के बाद संध्या बन गई भारत की पहली महिला कुली, साहसी बेटी पाल रही परिवार का पेट !

बुदेलखंड की ये बेटी संध्या मारावी कुली बनकर महिला सशक्तीकरण की मिसाल पेश कर रही है । मध्य प्रदेश के कटनी रेलवे स्टेशन पर संध्‍या 65 पुरुष कुलियों के बीच अकेली महिला कुली है । वो जिस साहस से इस काम को करती है, उसके देखकर हर कोई उसकी हिम्‍मत की दाद देता है । संध्‍या के जिंदगी पति के रहते इतनी मुश्किल नहीं थी ।

लेकिन 2015 में पति के जाने के बाद से सब कुछ बदल गया। अब खर्च चलाना भी बड़ी चुनौती बन गया, लेकिन संध्या ने हार ना मानने का फैसला किया । तय किया कि वो कुली बनेगी और बच्‍चों को खुद संभलेगी । समाज की चिंता किए बिना संध्‍या मारावी ने 2017 में अपना काम शुरू कर दिया।

एकमात्र महिला कुली हैं संध्या

संध्या मारावी 30 साल की हैं और देश की पहली महिला कुली हैं। संध्या ने कुली बनकर सचमुच धारणाओं को तोड़ने का काम किया है। संध्या हर रोज सैंकड़ों मुसाफिरों की उनकी यात्रा को कामयाब बनाने में मदद करती हैं। सैंकड़ों मुसाफिरों के सफर को पूरा करने में मदद करने वाली संध्या खुद कैसे सफर करती हैं, ये जानना बेहद जरूरी है। कटनी रेलवे स्टेशन पर लाल कुर्ते में दौड़ती भागतीं संध्या का बैच नंबर 36 है।

अपने 3 बच्चों की परवरिश वह इसी नौकरी से करती हैं। संध्या के पति का पिछले साल 2017 के अक्टूबर महीने में निधन हो गया था। पति के बाद संध्या के सामने रोजीरोटी की मुश्किल खड़ी हुई। संध्या ने मुकद्दर के आगे घुटने नहीं टेके बल्कि कुली की नौकरी शुरू की। इस नौकरी से आज वह अपने तीन बच्चों और एक बूढ़ी सास की देखरेख कर पा रही हैं। घर में वह एकमात्र नौकरीपेशा हैं।

कडी मेहनत से करती है परिवार का पालन

संध्या ने बताया कि लंबी बीमारी के बाद उनके पति की मौत हो गई थी। पति की मौत के बाद 3 बच्चों की परवरिश और बूढ़ी सास की देखरेख का संकट उनके सामने खड़ा हो गया था। वह अपने बच्चों को किसी तकलीफ में नहीं डालना चाहती थीं। संध्या ने कई लोगों से संपर्क किया जिसके बाद कुछ लोगों ने उन्हें कटनी स्टेशन पर कुली की नौकरी के बारे में बताया।

रोज करती है लम्बी दूरी का सफर

संध्या ने साल 2018 के जनवरी महीने से ये नौकरी शुरू की है। इस नौकरी के लिए वह हर रोज अपने घर से कटनी स्टेशन तक की 45 किलोमीटर तक की यात्रा करती हैं। वह स्टेशन पर पुरुष कुलियों के बीच अकेली महिला हैं। एक कर्मठ महिला संध्या वजन को सिर और कंधे पर रखती हैं और परिवार की दाल रोटी के लिए जीतोड़ मेहनत हर रोज करती हैं।

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