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इरा सहगल : एक दिव्यांग IAS अधिकारी जिसने लोगों द्वारा मजाक बनाने के बाद ऐसे हासिल की सफलता

भारत में यूपीएससी सबसे श्रेष्ठ और उच्च स्तर की परीक्षा करवाती है। यूपीएससी की परीक्षा पास करने के बाद ही देश के उम्मीदवार आईएस, आईपीएस आईएफएस बनते हैं। भारत के करोड़ों युवाओं का सपना होता है कि वह पढ़ लिख कर एक दिन सिविल सर्विसेज की परीक्षा दें और उसमें सफल होकर आईएएस अधिकारी बनकर देश की सेवा करें। देश की सेवा करने का सपना संजोए लाखों युवक हर साल यूपीएससी की परीक्षा देते हैं लेकिन उनमें से बहुत कम ऐसे हैं जिनको यह सौभाग्य प्राप्त हो पाता है।

आज हम एक ऐसी ही महिला के बारे में बात करने वाले हैं जिसने दिव्यांग होने के कारण समाज के लोगों के ताने सहे और उनके द्वारा मजाक का जरिया बनी लेकिन इसी चीज को अपनी मजबूती और मनोबल बढ़ाने का तरीका बनाया। हम बात कर रहे हैं इरा सहगल की जिन्होंने दिव्यांग होने के बाद भी आईएएस अधिकारी बनकर ऐसे लोगों के लिए प्रेरणा बनी है जो शारीरिक रूप से अपंग होने के बाद हिम्मत हार जाते हैं।

बचपन में संजोया था आईएएस बनने का सपना

उत्तर प्रदेश के मेरठ के रहने वाली इरा सहगल ने छोटी सी उम्र में ही आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखा था। ऐसा कहा जाता है कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती है एक दृढ़ निश्चय और इच्छाशक्ति लेकर जो इंसान लक्ष्य की ओर बढ़ता है उसके लिए कोई भी रास्ता मुश्किल नहीं होता। इस बात को सिद्ध किया है इरा सहगल ने जिन्होंने दिव्यांग होने के बावजूद भी अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी और यूपीएससी की परीक्षा देकर 2014 में ऑल इंडिया टॉपर बनी जो पूरे देशवासियों के लिए एक मिसाल है।

बचपन में आईएएस बनने के सपने देखने पर लोग उड़ाते थे मजाक

उत्तर प्रदेश के मेरठ की रहने वाली इरा सहगल ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि जब वह बचपन में आईएएस अधिकारी बनने के बारे में बात करती थी तो लोग उनके दिव्यांग होने का मजाक उड़ाया करते थे लोगों का कहना था कि जो लड़की अच्छे से चल नहीं पाती है वह क्या आईएएस अधिकारी बनेगी। इसके बस में कुछ नहीं होने वाला है। यह दौर इरा सहगल के लिए बहुत मुश्किल दौर था लेकिन उन्होंने इसका सामना किया और बीटेक तथा एमबीए की पढ़ाई करने के बाद कैडबरी कोका कोला जैसी बड़ी कंपनियों में नौकरी की तत्पश्चात उन्होंने 2010 में यूपीएससी की परीक्षा दी जिसमें वह सफल हुई।

2010 में सफल होने के बावजूद भी उन्हें नियुक्ति नहीं दी गई थी तब उन्होंने इस फैसले को चुनौती दी और सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल जाने के बाद फैसला उन्हीं के हक में आया और 2014 में हैदराबाद में उनकी नियुक्ति भी हो गई। इसके बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और 2014 में एक बार फिर से यूपीएससी का एग्जाम दिया और इस बार ऑल इंडिया में टॉप किया जिसके साथ ही वह लोगों के लिए एक मिसाल बन गई।

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