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मां बेचा करती थी शराब बेटा ने झोपड़ी में रहकर पढ़ाई की बन गया कलेक्टर

इंसान अगर मेहनत करे तो वह सफलता पा सकता है ऐसी ही कहानी है राजेंद्र भारुड की। बचपन से ही गरीबी के साए में रहे थे इतनी ज्यादा गरीबी थी कि अपने पिता की एक तस्वीर भी नहीं खींच पाए थे उनकी मां देसी शराब बेचा करती थी। बचपन में जब राजेंद्र भूखे हुआ करते थे तो उनकी दादी उनके मुंह में एक दो चम्मच शराब डाल दिया करती थी। मां ने शराब बेचकर बेटे को पैसे दिए और उन्हें पैसों से बेटे ने किताब खरीद कर पढ़ाई करना शुरू किया और मेहनत करके आज कलेक्टर बन गए हैं।

महाराष्ट्र के रहने वाले हैं राजेंद्र

महाराष्ट्र के रहने वाले राजेंद्र ने कहा कि जब मैं अपनी मां के गर्भ में था तब ही मेरे पिता की मृत्यु हो गई थी। लोगों ने मेरे पिता की मृत्यु होने के बाद मेरी मां को बच्चा गिराने की सलाह दी लेकिन उन्होंने बचा गिराने से इंकार कर दिया। उस समय हम बहुत गरीब थे जब मेरा जन्म हुआ मेरी मां देसी शराब बेचा करती थी जब मैं भूखा सोता था जब मेरी मां और दादी मेरे मुंह में एक दो चम्मच शराब डाल दिया करती थी।

राजेंद्र ने बात करते हुए बताया कि बचपन में जब उनकी दादी उनके मुंह में एक दो चम्मच शराब डाल दिया करती थी तो उन्हें इस चीज की धीरे-धीरे लत लगने लग गई थी लेकिन जब भी वह भूखे हुआ करते थे तो एक दो चम्मच शराब डालने की वजह से ही सो जाया करते थे। खांसी बुखार में भी मुझे शराब ही पिलाई जाती थी।

10वीं और 12वीं कक्षा में लाए थे अच्छे नंबर

राजेंद्र ने बताया कि जब वह बड़े हुए तो मेरी मां के पास शराब पीने वाले लोग आया करते थे वह मेरे से खाने पीने का सामान मंगाया करते थे तो वह मुझे कुछ पैसे दे दिया करते थे उसी से मैंने किताबें खरीदी और दसवीं की पढ़ाई करना शुरू कर दिया दसवीं कक्षा में मुझे 95% अंक प्राप्त हुए थे।

मां को नहीं हो रहा विश्वास

राजेंद्र ने आगे बात करते हुए बताया कि उन्होंने मेहनत कर कर 12वीं कक्षा में अच्छी पढ़ाई की और उन्हें 90% अंक हासिल किए जिसके बाद उन्होंने मेडिकल की कॉलेज में एडमिशन लिया। लोग उसकी मां को ताना दिया करते थे कि आपका बेटा भी तुम्हारी तरह बड़ा होकर शराब ही बेचेगा। लेकिन मेरी मां ने कहा था कि मैं अपने बेटे को बड़ा होकर कलेक्टर या डॉक्टर बनाऊंगी। जिसके बाद राजेंद्र ने यूपीएससी की तैयारी करना स्टार्ट कर दिया और बड़ी मेहनत के बाद वह कलेक्टर बन गए इस बात की खबर जो उनके गांव वालों को लगी तो पूरे गांव वालों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था और उनकी मां को तो इस बात का विश्वास भी नहीं हो रहा था कि वह कलेक्टर बन गए हैं।

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