अजीत डोभाल जो भारत के जासूस हैं और आज भी वह हमारे बीच में उपस्थित हैं। उन्होंने अपनी 37 साल की नौकरी में 30 साल तक जासूसी की ओर 20 से 25 साल तक उन्होंने गुमनामी की जिंदगी बिताई। जिन्हें सिर्फ उनके साथी अधिकारी ही जानते थे। उन्होंने सिर्फ 7 साल तक ही पुलिस की वर्दी पहनी अपना अलग अलग रूप बदलकर काम किया तथा कभी रिक्शावाला बने तो कभी किसी और धर्म का नाम रख कर भी उन्होंने काम किया अभी उन्होंने आतं-कवा-दियों के घर में घुसकर उनसे बात भी की और वह यह भी जानते थे कि अगर वे पकड़े गए तो उनकी जा-न भी जा सकती हैं।
अजीत डोभाल का जन्म 20 जनवरी 1945 को उत्तराखंड के एक गांव में हुआ उनके पिता भी इंडियन आर्मी में थे। अपनी स्कूल की पढ़ाई करने के बाद मैं अपने कॉलेज की पढ़ाई करने के लिए अजमेर के एक मिलिट्री स्कूल में गए। और आगरा से उन्होंने इकनोमिक से मास्टर डिग्री हासिल की।
IPS
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पहले ही प्रयास में पास कर ली जहां उन्हें आईपीएस का पद मिला और उन्हें केरल का कैडर मिला। जहां उन्हें एसपी के तौर पर अपनी नौकरी ज्वाइन की।
1971 की घटना
उन्हें अपनी नौकरी ज्वाइन किए डेढ़ साल भी नहीं हुए थे कि केरल के उन्नाव जिले के इलाके थलासेरी में 28 दिसंबर 1971 में एक घटना हो गयी जहाँ दो समुदाय आपस में कुछ हो गया जिन्हें रोक पाना किसी भी अफसर के लिए नामुमकिन लग रहा था। तब यह फैसला लिया गया कि वहां पर अजीत डोभाल को भेजा जाये। अजीत डोभाल की पहली कामयाबी यहीं से शुरू होती है उन्होंने सभी लोगों के लुटे हुए सामान को ऑफिस के घर पहुंचाया .
IB में शामिल
उसके बाद उन्हें 1972 में दिल्ली बुलाया गया जहां से खुफिया ब्यूरो में भेज दिया गया। यहां से शुरू होती है इनके जासूस बनने की कहानी। उसके बाद उन्हें 70 के दशक मिजोरम में भेजा गया जहां अशांति का माहौल फैला हुआ था जोगी मिजोरम को भारत से अलग करने की मांग कर रहे थे। जहां 5 साल तक उनकी तैनाती कर दी गई। लाल डेंगा नाम के आदमी की जासूसी की जोकि मिजोरम की पार्टी नेशनल फ्रंट ऑफ़ मिज़ो नेशनल का नेता था। उसके बाद 1976 में लाल डेंगा और सरकार के बिच समझौता हो गया तथा मिजोरम में शांति हो गयी जिसका श्रेय अजित डोभाल को दिया जाता हैं। जिसके लिए उन्हें सिर्फ़ 8साल में मैडल भी मिला।
ऑपरेशन ब्लैक थंडर
वह स्वर्ण मंदिर में रह रहें खालिस्तानियों की जासूसी करने के लिए रिक्शे वाले का भेंस बदल कर उन्होने मंदिर में अपनी एंट्री की उसके बाद उन्होंने उनकी सारी जानकारी हासिल करके उन लोगों के खिलाफ ऑपरेशन चलाया गया। अजीत डोभाल ऐसे पहले इंसान है जो सेना में नहीं है। फिर भी उन्हें कीर्ति चक्र के अवार्ड से नवाजा गया। उन्होंने राजनयिक के तौर पर पाकिस्तान और इंग्लैंड में भी काम किया जासूस के तौर पर भी काम किया।